ज्युलियन ह्यांची एक कविता आहे :
जू बैसले मानेवरी, चाबूक हा पाठीवरी...
तर ह्यातले जू ( बैलाच्या मानेवरचे लाकडाचे ओढण्यासाठी केलेले ) म्हणजे "ब्वा" (बुवा) व ते जिच्यावर आहे ती "बै" , आणि हे ज्यांना सलते ते "मानेवरी" (मान्यवर) , आणि जे हे मानत नाहीत, त्यांच्या पाठीवर चाबूक ( मारा) !
गुरुवार, २२ सप्टेंबर, २०१६
बै कोणाला म्हणतात ?
गुरुवार, १५ सप्टेंबर, २०१६
भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स
भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ७१
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न देवा: दंडम् आदाय रक्षति पशुपालवत् |
यं तु रक्षितुम् इच्छंति बुद्ध्या संविभजन्ति तम् ||
( अर्थात : भगवान किसी का रक्षण करने के लिये हात मे दंडा ले के नही बैठता. जिस का रक्षण करना वह चाहता है उस को वो बुद्धी का वरदान दे देता है. ).
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भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ७२
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कं संजघान कृष्ण: ?
( कृष्ण ने किस को मारा ? )
का शीतलवाहिनी गंगा ?
( शीतल जल वाली गंगा कहां है ? )
के दारपोषणरताः ?
( दारे का पोषण करने वाले लोग कौन ?)
कं बलवन्तम् न बाधते शीतम् ?
( कौन से बलवान को ठंड नही लगती ?)
इन सभी का उत्तर श्लोक मे ही है. पहिला अक्षर और दुसरा अक्षर जोड के उत्तर आता है. जैसे :
कंस ; काशी ; केदार ( किसान ) ; कम्बल पहना हुवा कम्बलवंत
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भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ७३
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व्रजत्यध: प्रयात्युच्चै:, नर: स्वैर् एव चेष्टीतै: |
अधः कुपस्थ खनक:, उर्ध्वं प्रासादकारक: ||
( अर्थात : आदमी की तरक्की या अधोगती उसके काम से होती है. जैसे कोई अगर कुंवा खोद रहा हो तो वो जैसे कुंवा नीचे जायेगा उस के साथ साथ आदमी भी नीचे नीचे जायेगा. परंतु कोई अगर उंची हवेली बांध रहा हो तो वो हवेली के साथ साथ खुद भी उंची जगह जायेगा. प्रगती और अधोगती का प्रमाण यहा प्रत्यक्ष उंची नीची जगह मे सोची गयी है जिस के उपर आज हमे हंसी आ सकती है. जैसे एक जमाने मे जिन्होने तेल के गहरे कुंवे खोदे ते उनको बहुत लाभ हुवा और प्रगती हुई. फिर भी उंच नीच का प्रत्यक्ष प्रमाण ले के प्रगती या अधोगती समझना यह सोचने के प्रयास पर हंसी लाती है. ).
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शुक्रवार, २ सप्टेंबर, २०१६
भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ६८
भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ६८
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षटकर्णो भिद्यते मन्ञ: चतुष्कर्ण: स्थिरो भवेत् |
द्विकर्णस्य तु मंत्रस्य ब्रह्मापी अंतं न गच्छति ||
( अर्थात : कोई गुप्त रहस्य छ कानो पर ( याने तीन आदमी को ) पडे तो वह गुप्त नही रहता और वह सब जान जाते है . वही गुप्त चीज अगर चार कानो पे ( याने दो आद्मियो के बीच ) पडती है तो वह दो आद्मियो के बीच स्थिर रहती है. और जो चीज सिर्फ दो कानो पे ( याने एकही आदमी को ) पडती है वह तो खुद ब्रह्मदेव भी नही जान सकता. इस लिये कोई गुप्त चीज किसी को भी नही कहनी चाहिये. ).
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कवी गायब यार
मख्खी टू मख्खी भाषांतर...!
आमच्या काळी आम्ही इंजिनियरिंग ड्रॉंईंग मध्ये मख्खी टू मख्खी कॉपी करीत असू. म्हणजे ज्याचे कॉपी करायचे त्याच्या शीट वर माशी बसलेली असेल तर आपलीही माशी तिथेच बसलेली असली पाहिजे.
असेच म्हणे भाषांतराचे एक मशीन आले आहे.
त्यात “कवी गुलजार” ह्यांचे भाषांतर :
“कवी गायब यार”
( गुल म्हणजे गायब व जार म्हणजे यार ) असे झाले.
.....पण ही काही चूक नाही, वास्तवच ते !
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