बुधवार, २४ ऑगस्ट, २०१६

भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ६३

भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ६३

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आकर्ण्याम्रफलस्तुतिं जलम् अभूत् तत् नारिकेलांतरम्

प्राय: कंटकितम् तथैव पनसं, जातं द्विधा उर्वारुकम्  |

आस्ते अधोमुखम् एव कादलम् अलं द्राक्षाफलं क्षुद्रता

श्यामत्वम् बत जाम्बवं गतं अहो मास्तर्यदोषाद् इह  ||

 

( अर्थात : अपने फल ऐसे क्यो है इसकी कल्पना यहा की गयी है. शायद आम की तारीफ करने से बाकी फल असंतुष्ट हो गये होंगे ऐसी यहा कल्पना की गयी है. आम की तारीफ सुन के नारीयल का पानी पानी हो गया, फणस को रोमांच/कांटा  खडे हुये, वाळक ( एक प्रकार की ककडी ) के दुःख से दो तुकडे हो गये, केले ने अपनी गर्दन शरम से नीचे की, अंगूर सुकड कर छोटे हो गये और जाम्बून मत्सर से काले पद गये. ).

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