गुरुवार, १५ सप्टेंबर, २०१६

भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स

भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ७१

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न देवा: दंडम् आदाय रक्षति पशुपालवत् |

यं तु रक्षितुम् इच्छंति बुद्ध्या संविभजन्ति तम् ||

 

( अर्थात : भगवान किसी का रक्षण करने के लिये हात मे दंडा ले के नही बैठता. जिस का रक्षण करना वह चाहता है उस को वो बुद्धी का वरदान दे देता है. ).

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भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ७२

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कं संजघान कृष्ण: ?

( कृष्ण ने किस को मारा ? )

का शीतलवाहिनी गंगा ?

( शीतल जल वाली गंगा कहां है ? )

के दारपोषणरताः ?

( दारे का पोषण करने वाले लोग कौन ?)

कं बलवन्तम् न बाधते शीतम् ?

( कौन से बलवान को ठंड नही लगती ?)

 

इन सभी का उत्तर श्लोक मे ही है. पहिला अक्षर और दुसरा अक्षर जोड के उत्तर आता है. जैसे :

कंस ; काशी ; केदार ( किसान ) ; कम्बल पहना हुवा कम्बलवंत

 

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भालेराव के सुसंस्कृत जोक्स : ७३

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व्रजत्यध: प्रयात्युच्चै:, नर: स्वैर् एव चेष्टीतै: |

अधः कुपस्थ खनक:, उर्ध्वं प्रासादकारक: ||

 

( अर्थात : आदमी की तरक्की या अधोगती उसके काम से होती है. जैसे कोई अगर कुंवा खोद रहा हो तो वो जैसे कुंवा नीचे जायेगा उस के साथ साथ आदमी भी नीचे नीचे जायेगा. परंतु कोई अगर उंची हवेली बांध रहा हो तो वो हवेली के साथ साथ खुद भी उंची जगह जायेगा. प्रगती और अधोगती का प्रमाण यहा प्रत्यक्ष उंची नीची जगह मे सोची गयी है जिस के उपर आज हमे हंसी आ सकती है. जैसे एक जमाने मे जिन्होने तेल के गहरे कुंवे खोदे ते उनको बहुत लाभ हुवा और प्रगती हुई. फिर भी उंच नीच का प्रत्यक्ष प्रमाण ले के प्रगती या अधोगती समझना यह सोचने के प्रयास पर हंसी लाती है. ).

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